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Sunday, January 9, 2011

पर्यावरण संरक्षण- देवेश तिवारी



दुनिया की रफ़्तार बहुत तेजी से बढ़ रही है | इंसान की रफ्तार भी तेज हो चुकी है और वह अपने ही आसपास की चीजों को नहीं समझ पा रहा हैं. ढेर सारे बदलावों में एक बदलाव है,पर्यावरण का बदलाव. इस बदलाव को समझने की ही नहीं बल्कि तेजी से बढ़ते खतरे को भी महसूस करने और समय रहते इसके बचाव के उपाय करने आवश्यक है,
नहीं तो यह हमें ही नहीं बल्कि संपूर्ण मानवजाति को निगल लेगा. इस चिंता के बावजूद हम चैन की नींद सो रहे हैं  निज-स्वार्थ के कारण यदि  कोई पर्यावरण संरक्षण के लिए आगे आते  हैं  तो वे प्रशंसा के पात्र  हैं  क्योंकि किसी बहाने ही सही उन्होंने  सही दिशा में कदम तो उठाया है.
सुधार की शुरुआत हमेशा खुद से करनी चाहिये फिर चाहे वह आचरण हो या फिर और कोई बुराई. पर्यावरण प्रदूषण पर अब एकदम से रोक लगा पाना मुश्किल है.अपने और लोगों के किये गए छोटे छोटे प्रयासों से धीरे धीरे इस पर लगाम लगाया जा सकता है  
विकास का जिस तरह का मॉडल अभी विश्व में अपनाया गया है, उससे पर्यावरण तेजी से प्रदूषित होता है जबकि प्रदूषण से छुटकारा पाने में सालों लग जाते हैं. औद्योगिकीकरण की भूख ने संपूर्ण मानवता को ही खतरे में डाल दिया है. माना कि यह युग औद्योगिक विकास का युग है, लेकिन आने वाली पीढिय़ा इसे पर्यावरण विनाश का युग भी मानेगी. शायद यह बात हम पहले से ही जाने हैं लेकिन अनजान बने रहने का ढोंग करते हैं  फैक्ट्रियों, कारखानों से निकलने वाला धुआ हमें हजारों तरह की नई-नई बीमारिया दे रहा है और हम खुद का विकसित कहलाने में गौरान्वित महसूस कर रहे हैं. कार्बन मोनो आक्साइड, नाइट्रोजन-डाइ-आक्साइड और सल्फर-डाइ आक्साइड जैसी गैसें जो मोटरों के ईंधन के जलने से उत्पन्न होती है, मानव जीवन में जहर घोलने का कार्य कर रही है. पानी का प्रदूषण मुख्य रूप से फैक्ट्रियों से निकलने वाले केमिकलयुक्त पानी और अपशिष्ट पदार्थों से होता है. अब तो किसी भी साफ दिखने वाले पानी में अर्सेनिक की मात्र हो सकती है | कीटनाशकों के बेतहाशा उपयोग ने जमीन को जहां बंजर बनाने का काम किया, वहीं खाद्यान्न की गुणवत्ता पर भी असर डाला. इससे कई तरह की बीमारियां होने लगी. सडक़ों के किनारे फेंके जाने वाले कुड़ा-कर्कट,पालीथीन  नदियों में फेंके जाने वाले अपशिष्ट पदार्थों के साथ ही और भी अन्य तरह से पर्यावरण का नुकसान पहुंचाने का कार्य हमारे द्वारा किया जा रहा है.
हैरत की बात तो यह है कि यह जानते हुए कि इससे पर्यावरण प्रदूषित होता है, हम अपनी हरकत से बाज नहीं आते . जल, वायु, भूमि, के साथ ध्वनि प्रदूषण भी बहुत ही तेजी से बढ़ा है. तरह-तरह के विकिरण जो हमे दिखाई नहीं देते, परमाणु युग की देन है. ये रेडियो विकिरण स्वास्थ्य के लिये घातक है. परमाणु शस्त्रों के परीक्षण से इन विकिरणों की मात्रा दिनोंदिन बढ़ती जा रही है विभिन्न देशों के वैज्ञानिक इस खोज में लगे हुए है कि किस तरह पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाया जा सके. रोज ही इसके लिए शोध किये जा रहे हैं. भारत में भी पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिये उपाय हो रहे हैं, लेकिन अभी-अभी लोगों में इसे लेकर जागरूकता नहीं है.
छह साल पहले 22 अप्रैल 2004 को भारत के पर्यावरणविदों की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने एनसीईआरटी से स्कूलों के लिए पर्यावरण पाठ्यक्रम तैयार कर अध्ययन कराने के निर्देश दिये थे. पर्यावरणविदों और पर्यावरण प्रेमियों का इस मामले में तर्क ये था कि मनुष्य हर पढ़ी हुई चीज पर विश्वास करता है बचपन से ही पर्यावरण संरक्षण की बात पाठ्यक्रम के रूप में बच्चों तक पहुंचाई जाये तो बच्चे बड़े होकर पर्यावरण की सुरक्षा में अपना योगदान देंगे. साथ ही वे खुद भी कभी ऐसे व्यवसाय को नहीं अपनाएंगे जिससे पर्यावरण प्रदूषित होता है | एनसीईआरटी द्वारा तैयार किये गये आदर्श पाठ्यक्रम को सुप्रीम कोर्ट द्वारा मंजूरी मिलने के बाद से लेकर अब तक बच्चें स्कूलों में इसे विषय के रूप में अध्ययन कर रहे हैं. पर एक संकट यह है कि अन्य विषयों के बीच इनका अस्तित्व सुरक्षित नहीं है. दरअसल इस पाठ्यक्रम को बच्चों के सामने औपचारिक रूप में प्रस्तुतं किया जा रहा है और यह पाठ्यक्रम शिक्षकों की अनदेखी का शिकार हो रहा है | यह दुखद नहीं है तो और क्या है. सुप्रीम कोर्ट ने एनसीईआरटी को यह जिम्मा सौंपा था कि वह देखें कि देशभर में 12 वीं कक्षा तक पर्यावरण की शिक्षा दी जा रही है या नहीं. एनसीईआरटी ने राज्य सरकारोंं तथा 500 से अधिक पर्यावरण से जुड़े प्रतिष्ठानों, गैर-सरकारी संगठनों और पर्यावरण विशेषज्ञों से विचार-विमर्श करके यह पाठ्यक्रम तैयार किया था, लेकिन इससे भी पर्यावरण सुरक्षा की दिशा में फिलहाल कुछ खास फर्क पड़ता दिखाई नहीं दे रहा है. हालांकि यह बात भी सच है कि इतनी बड़ी समस्या का हल एक-दो दिनों में तो होगा नहीं, परिवर्तन शनै: शनै: ही संभव है. धैय रखना पड़ेगा
यूनिवर्सिटी तभी  पर्यावरण का संरक्षण किया जा सकता है विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से भी पूछा गया था कि बीए और एमए में पर्यावरण अध्ययन को विषय के रूप में शुरू किया जा सकता है या नहीं. फिलहाल तो पाठ्यक्रम शुरू नहीं हुआ है. पर्यावरण सुरक्षा को लेकर अब तक कई ऐसे अभियान जिनका संबंध खासतौर पर पर्यावरण शिक्षा से है, चलाने का श्रेय देश के प्रमुख वकीलों में से एक और प्रख्यात पर्यावरणवादी एमसी मेहता को जाता है. 1991 को उन्होंने पहली बार पर्यावरण की सुरक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और आने वाले संकट को लेकर देश की जनता को आगाह किया. पर श्री मेहता के इस प्रयास की कद्र कितने लोगों ने की और उनकी बातों पर गौर करते हुए पर्यावरण संरक्षण की दिशा में न जाने कितने लोग आये. पिछले कुछ वर्षों में देखने को मिल रहा है कि पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिए देश और दुनिया में जगह-जगह सम्मेलन, संगोष्ठियां, कार्यशालाएं और इसी तरह के अन्य कई कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं. ऐसे कार्यक्रमों से लाभ तो मिलता है लेकिन कई मर्तबा कम या नहीं भी मिलता है अपने राज्य छत्तीसगढ़ की बात. करें तो  इस प्रदेश का 44 फीसदी क्षेत्र को वनाच्छादित माना जाता है. हालांकि यह केवल सरकारी आंकड़ा है, जो सच्चाई से कोसों दूर है. कभी यहां का पर्यावरण अच्छा हुआ करता था. लेकिन पिछले दस सालों में अर्थात राज्य बनने के बाद से लेकर अब तक प्रदेश के पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के कई कारण यहाँ उत्पन्न हो गए हैं  अकेले जांजगीर-चांपा जैसे छोटे जिले में 40 पावर प्लांट की स्थापना के लिए एमओयू मिल चुकी है इसी तरह बस्तर, दंतेवाड़ा, रायगढ़, कोरबा, रायपुर, बिलासपुर, सहित प्रदेश के अन्य जिलों में पवेर प्लांट की स्थापना की जा रही है इनसे निश्चित ही छत्तीसगढ़ राज्य का विकास होगा और लोगों को रोजगार भी मिलेगा | साथ ही साथ पर्यावरण प्रदुषण का खतरा भी उत्पन्न हो जायेगा | तेजी से प्रदूषित होते पर्यावरण से शायद  जनता सरकार की ईमानदारी पर यकीन न करे . पर्यावरण संरक्षण के लिए ईमानदार प्रयास के साथ ही ईमानदार हुकूमत का होना आवश्यक है,
       पर्यावरण संरक्षण के प्रयास तो लगातार जारी  हैं लेकिन खंड वर्षा से फसलों की सिंचाई नहीं होती, मूसलाधार बारिश के सामान ही हर चरण में इसके किये प्रयास होने जरुरी है | प्राथमिक स्तर की शिक्षा से लेकर पी एच डी के शोध तक पर्यावरण विषयों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए | साथ ही केवल शहरो में किये जाने वाले जागरूकता के प्रयासों को गाँव गांव तक पहुचने की जरुरत है | पर्यावरण संरक्षण के लिए हमरे द्वारा किया जाने वाला प्रयास एक एक प्रयास आने वाली पीढ़ी के लिए मिल का पत्थर साबित होगा |                     
                                         देवेश तिवारी (पत्रकारिता छात्र )
sabhar : sunil shrama

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