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Sunday, January 9, 2011

मीडिया और बाजारवाद --- देवेश तिवारी

मीडिया और बाजारवाद

जब किसी विशेष क्षेत्र में उत्पादों  का क्रय विक्रय बड़ी सहजता से हो और बाजार का विकास होने लगे । और लोग अपने उत्पादों की बिक्री के लिए स्वयं बाजार का निर्माण करने लगें तो इसे बाजारवाद कहा जाता है बाजारवाद विकास का ही एक माध्यम है ।
  परन्तु जब बाजारवाद को मीडिया के साथ जोड़ा जाता है तो यह अशोभनीय हो जाता है मीडिया आज पुरी तरह बाजारवाद के धेरे मे आ चुका है हम भारत देश में रहते हैं और अपने गौरवशाली इतिहास का अनुसरण करते हैं। भारत में समाचार पत्रों का प्रकाशन 1780 में आरंभ हुआ था। प्रारंभ में जब अखबार को व्यवसायीक नजरीये से शुरू किया गया तब यह अधिक दिनों तक न चल सका। इसी के साथ जो अखबार सेवा के उददेश्य से शुरू किये गये वे आज भी जिवंत अवस्था में हैं और आज भी समाज में अपनी प्रतिष्ठा बनाए हुए हैं। भारत के क्रंातीकारीयों ने अपनी आवाज को लोगों तक पंहुचाने के उद्देश्य से समाचारों का प्रकाशन किया। उनका मुख्य लक्ष्य जन जन में देश प्रेम की भावना का संचार करना था। तब लोग समाचार पत्रों को गंभीरता से पढ़ा करते थे और उनका अनुसरण किया करते थे। पहले के अधिकांश पत्रकार समाज सेवी शीक्षक या सेनानी हुआ करते थे। जिनका मुख्य उद्देशय देश की सेवा करना हुआ करता था ।

                                                                                                                                                                
परन्तु आज मीडिया अपने उद्देश्य से पुरी तरह भटक चुकी है आज मीडिया हमारे बीच तो है परन्तु उसकी सेवा धर्म वाली नीति व्यवसाय के चकाचैंध में कहीं गुमनाम हो गयी है। पहले मीडिया को सेवा का माध्यम कहा जाता था आज इसे मेवा का माध्यम कहा जाता है। जिसका काम केवल और केवल लाभ कमाना है।

सर्वप्रथम मीडिया में बाजारवाद की शुरूआत अमरीका से हुई थी दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमरीका मेें समाचार पत्रों को सजा धजा कर प्रस्तुत करने का चलन प्रारंभ हुआ। तब उनके मध्य प्रतिस्पर्धा की शुरूआत हुई। और उनके बीच आगे निकलने की होड़ शुरू हो गयी।

प्रतिस्पर्धा के कारण बाजारवाद को बढ़ावा मिलता है। आज मीडिया में ढ़ेर सारे संस्थाओं के आ जाने से उनके बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ गयी है। आर्कषक मूल्य के विज्ञापन भी प्रतिस्पर्धा का एक कारण है समाचार पत्रों और समाचार चैनलों में उत्पादों के तरह तरह के विज्ञापन प्रकाशीत किये जाते हैं जिसे देखकर या पढ़कर लोग उत्पाद को खरीदने के लिए प्रेरीत होते हैं इन विज्ञापनों से मिलने वाली मोटी रकम ने बाजारवाद को बढ़़ावा दिया है। और मीडिया संस्थाओं में इजाफा हुआ है । उद्योगपतीयों का मीडिया संस्था में प्रवेश भी बाजारवाद का एक कारण है बड़े बड़े उद्यमी जब समाचारों को बिकने वाली वस्तु समझकर इसे व्यापार के नजरीये से देखने लगे तब धीरे धीरे यह भी व्यवसाय बन गया।

यह कटु सत्य है कि हमें जीवन को अच्छे ढ़ंग से जीने के लिए ढ़ेर सारे धन की आवश्यकता होती है लेकिन जीवन को सच्चे ढ़ंग से जीने के लिए कम धन भी पर्याप्त होता है। लोग समाचारांे को अपने अभीरूची से देखते हैं लोग समाचारों मेें दुर्घटना देखकर दुखी और देश की सम्पन्नता देखकर सुखी होते हैं एक एक खबर के साथ देश के करोड़ो लोगों का सीधा जुड़ाव होता है इसलिये वे इसे तल्लीन होकर देखते हैं परन्तु पैसे के पुजारीयों को इसमें मलाई नजर आता है । और वे इसमें कूद पड़ते हैं उनके घिनौने व्यवसायीक मति ने इस सेवा क्षेत्र को दलदल बना दिया है बाजारवाद से केवल नुकसान ही होता है

टी आर पी को बढ़ावा देना भी बाजारवाद का एक कारण है प्रत्येक संस्था हर खबर में मसाला लगाकर लोगों के सामने पेश करती है जिससे उसकी लोकप्रीयता बढ़े। जबकि केवल उन्हें बाजार में अपनी साख बचाने की परवाह है देश में घटने वाली हर छोटी बड़ी घटना को लोगों तक पंहुचाना मीडिया का कार्य है परन्तु आज खबरों की महत्ता का आकलन उस खबर से जुड़े लोगों से लगाया जाता है बाजारवाद में हर अखबार या चैनल विज्ञापनों के पीछे दौड़ लगाता है। चाहे इसके लिए उसे अपनी नीतियों से क्यों ना समझौता करना पड़े। आज समाज में बड़े बड़े कालाबाजारीयों की खबरें लोगों तक नहीं पंहुच पाते क्यांेकि मीडिया संस्थाओं को उनके जन्मदिवस पर विज्ञापन प्राप्त होता है

इस विषय पर मेरा मत है कि बाजारवाद को बढ़ावा देने में पुरी तरह सरकार तथा कुछ हद तक हम भी जिम्मेदार हैं। हमारी सरकार ने विदेशों के मीडिया संस्थाओं में सीधे पुंजी निवेश को बढ़ाकर 80 प्रतिशत कर दिया है आज भारत के 90 प्रतिशत मीडिया संस्थाओं पर विदेशीयोें का एकाधिकार हो गया है आज वे जो चाहते हैं हमें वे दिखाते हैं और हम उसे देखते हैं व्यापारीयों का एक मात्र धर्म होता है किसी भी तरह व्यापार में अधीक से अधीक लाभ कमाना चाहे उसके लिए कोई भी नीति अपनानी पड़े। और जब हम मीडिया को व्यापार ही कह रहे हैं तो इससे हमेशा अच्छे की अपेक्षा कैसे कर सकते हैं । आज हमें अपने देश में अपनी बातों की अभी व्यक्ति के लिए विदेशीयों का सहारा लेना पड़ रहा है और वे उसमें मसाला लगाकर हमें ही बेच रहे हैं और लाभ कमा रहे हैं हम उनकी उलुल जुलुल खबरों को देखकर उनकी टीआरपी बढ़ा रहे हैं। आज ही यदि हम विज्ञापन पत्र के समान दिखाई देने वाले मंहगे समाचार पत्रों को त्यागकर सस्ते तथा अच्छे समाचार पत्रों का पाठन शुरू करें तो मीडिया में शीघ्र ही एकाधिकार जमाए बैठे समाचार पत्रों का पतन हो जाएगा । इसके लिए फिर से समाजसेवी, देशप्रेमी लोगों को और युवाओं को सही ध्येय लेकर पत्रकारीता के आग में कुदना होगा और समय केा अग्नि परीक्षा देनी होगी ।

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