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Friday, January 14, 2011

नक्सलवाद बनाम प्रसिद्धि - देवेश तिवारी

नक्सलवाद आज देश के सामने बड़ी समस्या है और इससे निपटना सबसे बड़ी चुनौती। दरअसल नक्सलवाद, माओवादियों की नजरों में एक क्रांति है वर्तमान लोकतांत्रिय व्यवस्था के खिलाफ यह एक लड़ाई है। परन्तु  इसकी सच्चाई कुछ और ही है। जब बंगाल के कालीबाड़ी से कानु सान्याल और चारू मजुमदार ने पहली बार व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई लड़कर नक्सलवाद की शुरूआत की थी तब नक्सलवाद का चेहरा इतना भयानक नहीं था।

हाल ही में हुए नक्सली हमलों से एक बात साफ दिखाई दे रही है कि माओवादी न केवल हमारे सुरक्षा बलों को नुकसान पंहुचा रहे हैं बल्कि अब वे निर्दोष लोगों की हत्या कर रहे हैं। हाल ही में हुए ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस के दुर्घटना में नक्सलियों का संलिप्त होना, और राजनांदगांव में यात्री बस को उड़ाया जाना इसके साक्ष्य हैं ।  
 नक्सल प्रभावीत क्षेत्रों में आज कर्फ्यू सा माहौल है चारो ओर सुरक्षा बलों की तैनाती है एक तरफ सुरक्षा कर्मीयों की बन्दुकें हैं तो दुसरी तरफ नक्सलियों का डर, कुल मिलाकर बारूद के ढेर पर खड़े होकर  आदिवासी संगीनो के साये में जिन्दगी जीने को मजबुर हैं इतने बुरे हालात तो कभी दुश्मन देश की सीमा पर रहने वाले लोगों ने भी नहीं देखे होंगे । इस तरह की विषम परिस्थितियों से लड़ने की बजाय पुरे देश के नेता आज बस्तर को अखाड़ा समझ बैठे हैं और यहां होने वाली मौत के तांडव को एक खेल समझ कर इसका लुत्फ उठा रहे हैं।

आज राष्ट्रीय स्तर के कई नेता छत्तीसगढ़ के नक्सली समस्या के बारे में खुलकर बयान बाजी कर रहे हैं जबकि छत्तीसगढ़ से इनका नाता दो तीन दीन से ज्यादा का नहीं है पड़ोसी की विधवा को हर कोई भौजाई बनाता है और उस पर बुरी नजर डालता है ठीक यही स्थिति आज छत्तीसगढ़ की है यहां आज कोई भी नेता अपना प्रवास रख लेता है, कुछ तो बस्तर को आजादी के पहले का भारत समझकर सत्याग्रह यात्रा चलाते हैं।
सुरक्षा बलों से घिरे हुए एसी कार में बैठकर लोग प्रभावित क्षेत्र का दस से पंद्रह मिनट का दौरा करते हैं और वहां से लौटकर बड़ी-बड़ी बातें करते हैं तथा मीडिया की सुर्खियां बटोरते हैं। बड़े बड़े लेखक इन क्षेत्रोें की समस्याओं के बारे में समिक्षा देते हैं और प्रसिद्धि प्राप्त करते हैं। तालाब के ठहरे हुए पानी को देखकर दलदल का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता । आज छत्तीसगढ़ एक ऐसा रंगमंच बन चुका है जिस पर खड़ा होकर हर कोई अपने आपको श्रेष्ठ बताने का और लोगों की सहानुभुती को भुनाने का प्रयत्न करता है। हर एक नक्सली हमले के बाद विपक्षी दल बरसाती मेंढ़क की तरह चिल्लाने लगतें है और जब जनता को यह एहसास हो जाता है कि फलां पार्टी को हमारी फिक्र है सारा ढ़ोंग ढकोसला बंद हो जाता है। आज हमले के तुरंत बाद सियासत का बाजार गर्म हो जाता है और जमकर बयानबाजियां की जाती है।
जिस हमले में शहिदों कि शहादत को सलाम करना होता है वहां इसे मौका समझकर इसे अपनी बात रखने का अवसर माना जाने लगा है। नक्सली हमले के तुरंत बाद आरोप प्रत्यारोप के शोरगुल के बीच शहीदों के परिजनों की सिसकियां कहीं खो जाती है। सत्ता की चाह रखने वाले दल खिसियानी बिल्ली की तरह मुद्दा नोचने लगते हैं निचले स्तर के नेता से शीर्ष तक के सभी नेता नक्सल समस्या को लेकर केवल प्रसिद्धि पाने के लिए पुतला दहन, शोक सभा, मौन रैली तक का आयोजन करते रहते हैं, यदि उनके अंदर सचमुच सहानुभुति है तो बजाय हो हंगामे के शहिदों के परिवारो  के लिए सहायता राशी क्यों नहीं जुटाने का कल्याण क्यों नहीं करते हैं। राज्य और केंद्र सरकार के बीच नक्सल समस्या को लेकर खींचतान जारी है ।




नक्सल समस्या से निपटने आज हमारा हर दांव खाली जाता दिखाई दे रहा है। ऐसे में केंद्र सरकार भी सेना के प्रयोग को लेकर संशय की स्थिति बनाए हुए है। राज्य केंद्र से सहयोग की आस लगाए हुए है वहीं केंद्र राज्य को अपने बल बढ़ाने की सलाह दे रहा है इन दोनों के चलो मामा चलो भांजा वाली स्थिति का लाभ नक्सली उठा रहे हैं और नित नये वारदातों को अंजाम देकर जवानों के खून से होली खेल रहे हैं । राज्य की सरकार जैसे ही नक्सलियों के खिलाफ कठोरता बरतने का प्रयास करती है वैसे ही मानवाधिकार आयोग के सदस्य इसे बर्बर हिंसा करार देते हैं । अब सरकार करे तो क्या करे लगातार बदलती विषम दशा की मुकदर्शक बनी रहे या लड़ाई में शहीदों की शहादत पर विपक्ष की आलोचना झेलती रहे । इससे पहले की राज्य की स्थिति हाथ से बाहर चली जाए इस पर लगाम लगाने की जरूरत है। यह किसी एक के चाहने से नहीं होगा। इसके लिए देश के हर एक राजनैतिक दल को गरम तवे में रोटी सेंकने की बजाय साथ मिलकर काम करना होगा ।
वैचारिक मतभेद एक आम बात है परन्तु हर वक्त मुखर विरोधी स्वर भी ओछी मानसिकता का प्रतिक हैै। धैर्य, बल, साहस, एकजुटता, जागरूकता और कुशल रणनिति के बल पर ही नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के बद्तर हालात पर काबु पाया जा सकता है यदि हम इस अभियान में सीधे सहयोग नहीं दे सकते तो कम से कम मौन रहकर इसे सहमती तो दे ही सकते हैं।

Wednesday, January 12, 2011

ठण्ड की मार - आशीष मोर्य ...

उत्तर पश्चिम  हवाओं के प्रभाव से इन दिनों पूरे छत्तीसगढ में कडाके की ठंड पड रहीं है। सर्द हवाओं का कहर आज भी जारी है और राज्य के सभी जिलो में इसका व्यापक असर  देखा जा रहा है। लोग दिनभर गर्म कपडें में ढके रहते है और वहीं सुबह से ही चलने वाली सर्द हवाओं से लोग खासे परेशान  है जिसके कारण पूरे दिन लोग गर्म कपड़ों से लदे  है। ठण्ड का  प्रभाव शासकीय कर्मचारी, अधिकारी एवं विद्यार्थी के उपर आसानी से  देखा जा सकता है। क्योंकि उन्हे सुबह जल्दी आफिस के लिए निकलना होता है तो वहीं छोटे-छोटे मासुम बच्चों को स्कुल जाने के लिए तैयार होना पडता है। जो उनके लिए एक कष्टप्रद है।        

इस समय प्रदेष में सर्द हवाओं का कहर निरंतर जारी है। बिलासपुर शहर में इस समय जिस प्रकार की ठंड पड रही है ऐसी ठंड पिछले वर्षों से नहीं पढीं थी। शीतलहर के कारण पारा दिन व दिन गिरते ही जा रहा है। जो न जाने कितनें दिनों तक बनी रहेगी जिसके कारण लोग सुबह से ही गर्म कपडें का सहारा ले रहे है। जहां रात में लोग आग जला कर ठंड से बचने का उपाय कर रहे है। और वहीं रात में गश्त लगाने  वाली  पुलिस भी ठण्ड कि वजह से काम चोरी कर रही है । सुबह जाने वाले अधिकारी व कर्मचारी ठंड से बचने के लिए आफिस के बाहर धूप में बैठ कर उपाय कर रहे है वहीं स्कुलों में टीचरों  द्वारा बच्चों को धूप में बैठा कर क्लास ली जा रही है   वहीं लोग शाम होते ही घर की ओर रुख करने  लगते है।
                         शाम होते ही पूरे सड़क पर सन्नाटा पसर जाता है। और ठंड का असर इतना है कि चोर चोरी करके निकल जाते हैं और लोगों को पता नहीं चलता वहीं पुलिस वाले भी चैक-चैराहे में हाथ सेकते नजर आते है। प्रदेश  के लगभग सभी शहर के लोग इस सर्द हवाओं के कहर का सामना कर रहे है। प्रदेष में कुछ ऐसे हिस्से भी है जहां पारा शून्य से भी नीचे जा चुका हैं। जहां के लोगो की दिनचर्या प्रभावित हो रहीं है। एवं उन्हें कई तरह कि बिमारियों  का सामना भी करना पड़ रहा है। इस ठंड को वैज्ञानिक ग्लोबल वार्मिग का प्रभाव कह रहे है वहीं कई  ज्योतिषों द्वारा हास्यपद तरीकों से इस ठंड के कहर को अपने पापों का नतीजा बताया  जा रहा है। ज्योतिषों द्वारा कही गई बातें कहीं न कहीं  प्राकृतिक संसाधनों एवं वातावरण के साथ खिलवाड़ कि और इशारा कर रही है । ग्रामिण क्षेत्रों में ठंड से मरने वालों की संख्या में इजाफा हुआ है जो सरकार के काम-काज पर   सवालिया निशान  उठा रहे  हैं । जिसको समय रहते ठीक करना सरकार के लिए एक चुनौती है। वैसे सरकार ठण्ड रोकने के लिए कर भी क्या सकती है सिवाय अलाव जलाने   के...................
                

इतनी ठंडी अब ना  भावे
पुरे दिन यह खूब सतावे
अब सूरज देवता आग बरसो
मई का रूप अब दिखलाओ ..............................


दुनिया में -कविता : अक्षय दुबे साथी



कोई अपना सा मिलना है यहाँ दुश्वार सा दुनिया में
बड़ी मुश्किल से पाई है हमने प्यार दुनिया में ||

जिनके हो भरे थैली दबे तहजीब जूतों में
चमकते हैं सितारों से बड़े दमदार दुनिया में ||

सियासत कि है जो हाल फीका है वो दोजख भी
जिनके हाथों में लाठी हो वाही सरकार दुनिया में ||

गरीबों के हाथों में बंधी कानूने जंजीरें ,
बिना जमानत के गुमते हैं यंह गददार दुनिया में ||

तरक्की ने तबाही के घने मखमल बिछाये हैं ,
क़यामत पर जुल्म ढा दें ऐसे फनकार दुनिया में ||

घने जंगल में जाओ तो कोई दहशत नहीं साथी
मिलेंगे बस्ती में गुमते शिकारी खूंखार दुनिया में ||

भ्रस्टाचार का काला खेल -

                                      भ्रष्टाचार किसी भी राष्ट्र के विकास का सबसे बड़ा  बाधक है यदि अभी ही भ्रष्टाचार पर नियंत्रण कर लिया गया  गया तो निश्चित  हि आने वाले दिनों में हमारा राष्ट्र विकसित  राष्ट्रो में गिना जाएगा। भारत विश्व  में भ्रष्टाचार के क्षेत्र में 28 वें स्थान पर गिना जाता रहा है परंतु इस वर्ष के सबसे बड़े-बडे़ घोटालों को देखकर  ऐसा लगता है कि भारत पहले स्थान पर आ गया है। इस वर्ष के सबसे बड़े घोटालों में सुरेश  कलमाड़ी  चर्चा में है जिन्होने कामनवेल्थ गेम्स में लगभग अरबो का घोटाला किया है इसी प्रकार के. राजा द्वारा टू-जी स्पेक्ट्रम में लगभग करोड़ो का घोटाला किया और हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने पाम आयल आयात घोटाला मामले में केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त पी. जे. थामस के खिलाफ मुकदमें को हरीझंडी दे दीहै ।  ये तो वे नाम हुए जो जिनका असल चेहरा खुले तोर पर लोगों के सामने आ गया  है भारत में और भी कई क्षेत्रो में घोटालें होते है जो सामने नहीं आते है।                                                      
                                 यहां एक छोटे से पद पर कार्यरत् कर्मचारी से लेकर बड़े-बड़े पदो पर नियुक्त अधिकारी तथा बड़े-बड़े नेता भी भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते है। अगर भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाना है तो सबसे पहले भ्रष्टाचार को दूर करना होगा। इसके लिए हर व्यक्ति को स्वयं में ये सोचना होगा कि मैं देश  के विकास के लिए क्या कर सकता हूँ ।
आज भारत में जो महंगाई है वह भी भ्रष्टाचार के कारण है। एक व्यक्ति भ्रष्टाचार से अपने परिवार में तो खुशियाँ   ला सकता है किन्तु वह यह नहीं सोचता कि इस भ्रष्टाचार से न जाने कितने लोगों लोगों का हक मारा गया है । आज एक गरीब परिवार को दो वक्त की रोटी नसीब नहीं हो रही है और देश का आम आदमी २० रूपये से भी काम आमदनी में जीवन जी रहा है तो देश  का भला कैसे हो सकता है।
                              जब तक भ्रष्टाचार का खेल राष्ट्र मे चलता रहेगा हम विकास के क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ सकते । मेरा मानना है कि इसके लिए कितने भी कड़े  कदम उठाएं जाएँ | भ्रष्टाचार समाप्त नहीं हो सकता जब तक हम स्वयं यह नहीं सोचेंगे कि भ्रष्टाचार देश के विकास में किस तरह रोड़ा बना हुआ है ......
                                                                                                            

लगा है नेताओं का बाजार
जनता जैसे गला आचार
कभी ना देखी ऐसी महंगाई
बिकने को है सब घर बार
त्राहिमाम जनता पुकारे
आब तो आ जाओ मोहन प्यारे
पांचजन्य फिर से बजाओ
सुदर्शन चक्र को लहराओ
महँगासुर है हमें सताता
तेरे सिवा ना कोई दाता
सरकार से अब आस ना रही
तू ही कुछ माया दिखादे
भ्रस्टाचारीओं का वध कर दो
धरती को पाप मुक्त कर दो
जनता रो रो करे दुहाई
अब तो आओ कृष्ण कन्हाई...................


Sunday, January 9, 2011

पर्यावरण संरक्षण- देवेश तिवारी



दुनिया की रफ़्तार बहुत तेजी से बढ़ रही है | इंसान की रफ्तार भी तेज हो चुकी है और वह अपने ही आसपास की चीजों को नहीं समझ पा रहा हैं. ढेर सारे बदलावों में एक बदलाव है,पर्यावरण का बदलाव. इस बदलाव को समझने की ही नहीं बल्कि तेजी से बढ़ते खतरे को भी महसूस करने और समय रहते इसके बचाव के उपाय करने आवश्यक है,
नहीं तो यह हमें ही नहीं बल्कि संपूर्ण मानवजाति को निगल लेगा. इस चिंता के बावजूद हम चैन की नींद सो रहे हैं  निज-स्वार्थ के कारण यदि  कोई पर्यावरण संरक्षण के लिए आगे आते  हैं  तो वे प्रशंसा के पात्र  हैं  क्योंकि किसी बहाने ही सही उन्होंने  सही दिशा में कदम तो उठाया है.
सुधार की शुरुआत हमेशा खुद से करनी चाहिये फिर चाहे वह आचरण हो या फिर और कोई बुराई. पर्यावरण प्रदूषण पर अब एकदम से रोक लगा पाना मुश्किल है.अपने और लोगों के किये गए छोटे छोटे प्रयासों से धीरे धीरे इस पर लगाम लगाया जा सकता है  
विकास का जिस तरह का मॉडल अभी विश्व में अपनाया गया है, उससे पर्यावरण तेजी से प्रदूषित होता है जबकि प्रदूषण से छुटकारा पाने में सालों लग जाते हैं. औद्योगिकीकरण की भूख ने संपूर्ण मानवता को ही खतरे में डाल दिया है. माना कि यह युग औद्योगिक विकास का युग है, लेकिन आने वाली पीढिय़ा इसे पर्यावरण विनाश का युग भी मानेगी. शायद यह बात हम पहले से ही जाने हैं लेकिन अनजान बने रहने का ढोंग करते हैं  फैक्ट्रियों, कारखानों से निकलने वाला धुआ हमें हजारों तरह की नई-नई बीमारिया दे रहा है और हम खुद का विकसित कहलाने में गौरान्वित महसूस कर रहे हैं. कार्बन मोनो आक्साइड, नाइट्रोजन-डाइ-आक्साइड और सल्फर-डाइ आक्साइड जैसी गैसें जो मोटरों के ईंधन के जलने से उत्पन्न होती है, मानव जीवन में जहर घोलने का कार्य कर रही है. पानी का प्रदूषण मुख्य रूप से फैक्ट्रियों से निकलने वाले केमिकलयुक्त पानी और अपशिष्ट पदार्थों से होता है. अब तो किसी भी साफ दिखने वाले पानी में अर्सेनिक की मात्र हो सकती है | कीटनाशकों के बेतहाशा उपयोग ने जमीन को जहां बंजर बनाने का काम किया, वहीं खाद्यान्न की गुणवत्ता पर भी असर डाला. इससे कई तरह की बीमारियां होने लगी. सडक़ों के किनारे फेंके जाने वाले कुड़ा-कर्कट,पालीथीन  नदियों में फेंके जाने वाले अपशिष्ट पदार्थों के साथ ही और भी अन्य तरह से पर्यावरण का नुकसान पहुंचाने का कार्य हमारे द्वारा किया जा रहा है.
हैरत की बात तो यह है कि यह जानते हुए कि इससे पर्यावरण प्रदूषित होता है, हम अपनी हरकत से बाज नहीं आते . जल, वायु, भूमि, के साथ ध्वनि प्रदूषण भी बहुत ही तेजी से बढ़ा है. तरह-तरह के विकिरण जो हमे दिखाई नहीं देते, परमाणु युग की देन है. ये रेडियो विकिरण स्वास्थ्य के लिये घातक है. परमाणु शस्त्रों के परीक्षण से इन विकिरणों की मात्रा दिनोंदिन बढ़ती जा रही है विभिन्न देशों के वैज्ञानिक इस खोज में लगे हुए है कि किस तरह पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाया जा सके. रोज ही इसके लिए शोध किये जा रहे हैं. भारत में भी पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिये उपाय हो रहे हैं, लेकिन अभी-अभी लोगों में इसे लेकर जागरूकता नहीं है.
छह साल पहले 22 अप्रैल 2004 को भारत के पर्यावरणविदों की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने एनसीईआरटी से स्कूलों के लिए पर्यावरण पाठ्यक्रम तैयार कर अध्ययन कराने के निर्देश दिये थे. पर्यावरणविदों और पर्यावरण प्रेमियों का इस मामले में तर्क ये था कि मनुष्य हर पढ़ी हुई चीज पर विश्वास करता है बचपन से ही पर्यावरण संरक्षण की बात पाठ्यक्रम के रूप में बच्चों तक पहुंचाई जाये तो बच्चे बड़े होकर पर्यावरण की सुरक्षा में अपना योगदान देंगे. साथ ही वे खुद भी कभी ऐसे व्यवसाय को नहीं अपनाएंगे जिससे पर्यावरण प्रदूषित होता है | एनसीईआरटी द्वारा तैयार किये गये आदर्श पाठ्यक्रम को सुप्रीम कोर्ट द्वारा मंजूरी मिलने के बाद से लेकर अब तक बच्चें स्कूलों में इसे विषय के रूप में अध्ययन कर रहे हैं. पर एक संकट यह है कि अन्य विषयों के बीच इनका अस्तित्व सुरक्षित नहीं है. दरअसल इस पाठ्यक्रम को बच्चों के सामने औपचारिक रूप में प्रस्तुतं किया जा रहा है और यह पाठ्यक्रम शिक्षकों की अनदेखी का शिकार हो रहा है | यह दुखद नहीं है तो और क्या है. सुप्रीम कोर्ट ने एनसीईआरटी को यह जिम्मा सौंपा था कि वह देखें कि देशभर में 12 वीं कक्षा तक पर्यावरण की शिक्षा दी जा रही है या नहीं. एनसीईआरटी ने राज्य सरकारोंं तथा 500 से अधिक पर्यावरण से जुड़े प्रतिष्ठानों, गैर-सरकारी संगठनों और पर्यावरण विशेषज्ञों से विचार-विमर्श करके यह पाठ्यक्रम तैयार किया था, लेकिन इससे भी पर्यावरण सुरक्षा की दिशा में फिलहाल कुछ खास फर्क पड़ता दिखाई नहीं दे रहा है. हालांकि यह बात भी सच है कि इतनी बड़ी समस्या का हल एक-दो दिनों में तो होगा नहीं, परिवर्तन शनै: शनै: ही संभव है. धैय रखना पड़ेगा
यूनिवर्सिटी तभी  पर्यावरण का संरक्षण किया जा सकता है विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से भी पूछा गया था कि बीए और एमए में पर्यावरण अध्ययन को विषय के रूप में शुरू किया जा सकता है या नहीं. फिलहाल तो पाठ्यक्रम शुरू नहीं हुआ है. पर्यावरण सुरक्षा को लेकर अब तक कई ऐसे अभियान जिनका संबंध खासतौर पर पर्यावरण शिक्षा से है, चलाने का श्रेय देश के प्रमुख वकीलों में से एक और प्रख्यात पर्यावरणवादी एमसी मेहता को जाता है. 1991 को उन्होंने पहली बार पर्यावरण की सुरक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और आने वाले संकट को लेकर देश की जनता को आगाह किया. पर श्री मेहता के इस प्रयास की कद्र कितने लोगों ने की और उनकी बातों पर गौर करते हुए पर्यावरण संरक्षण की दिशा में न जाने कितने लोग आये. पिछले कुछ वर्षों में देखने को मिल रहा है कि पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिए देश और दुनिया में जगह-जगह सम्मेलन, संगोष्ठियां, कार्यशालाएं और इसी तरह के अन्य कई कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं. ऐसे कार्यक्रमों से लाभ तो मिलता है लेकिन कई मर्तबा कम या नहीं भी मिलता है अपने राज्य छत्तीसगढ़ की बात. करें तो  इस प्रदेश का 44 फीसदी क्षेत्र को वनाच्छादित माना जाता है. हालांकि यह केवल सरकारी आंकड़ा है, जो सच्चाई से कोसों दूर है. कभी यहां का पर्यावरण अच्छा हुआ करता था. लेकिन पिछले दस सालों में अर्थात राज्य बनने के बाद से लेकर अब तक प्रदेश के पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के कई कारण यहाँ उत्पन्न हो गए हैं  अकेले जांजगीर-चांपा जैसे छोटे जिले में 40 पावर प्लांट की स्थापना के लिए एमओयू मिल चुकी है इसी तरह बस्तर, दंतेवाड़ा, रायगढ़, कोरबा, रायपुर, बिलासपुर, सहित प्रदेश के अन्य जिलों में पवेर प्लांट की स्थापना की जा रही है इनसे निश्चित ही छत्तीसगढ़ राज्य का विकास होगा और लोगों को रोजगार भी मिलेगा | साथ ही साथ पर्यावरण प्रदुषण का खतरा भी उत्पन्न हो जायेगा | तेजी से प्रदूषित होते पर्यावरण से शायद  जनता सरकार की ईमानदारी पर यकीन न करे . पर्यावरण संरक्षण के लिए ईमानदार प्रयास के साथ ही ईमानदार हुकूमत का होना आवश्यक है,
       पर्यावरण संरक्षण के प्रयास तो लगातार जारी  हैं लेकिन खंड वर्षा से फसलों की सिंचाई नहीं होती, मूसलाधार बारिश के सामान ही हर चरण में इसके किये प्रयास होने जरुरी है | प्राथमिक स्तर की शिक्षा से लेकर पी एच डी के शोध तक पर्यावरण विषयों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए | साथ ही केवल शहरो में किये जाने वाले जागरूकता के प्रयासों को गाँव गांव तक पहुचने की जरुरत है | पर्यावरण संरक्षण के लिए हमरे द्वारा किया जाने वाला प्रयास एक एक प्रयास आने वाली पीढ़ी के लिए मिल का पत्थर साबित होगा |                     
                                         देवेश तिवारी (पत्रकारिता छात्र )
sabhar : sunil shrama